पानी की कमी नहीं होने देती है शादियां

बुंदेलखंड में एक कहावत बड़ी प्रचलित है कि गगरी न टूटे खसम मर जाए…..यह है बुंदेलखंड में पानी की किल्लत के दर्द की कहानी। इतना ज्यादा है पानी का संकट कि औरतें गगरी का टूटना नहीं झेल सकतीं चाहें उनका पति ही क्यों न मर जाए। पिछले कई दशकों से पानी के संकट से जूझ रहे बुंदेलखंड के अधिकांश इलाके के कुएं सूखे पड़े हैं, बारिश की कमी का हाल यह है कि लोगों को पानी के लिए मीलों दूर जाना पड़ता है। ऐसे में लोग घर बार छोड़ कर शहरों में जा कर मजदूरी करते हैं. खेत सूखे रह जा रहे हैं, फसल नहीं हो रही है, सूखे का असर बस इतना ही नहीं है।
बुंदेलखंड के हजारों कस्बों और गांवों में आबादी की तादाद अच्छी है लेकिन लोग पानी का इंतजाम देखने के बाद ही अपनी बेटियों की शादी करते हैं। खेतों में मजदूरी करने वाले हेतू महीने में चार हजार रुपये कमा लेते हैं। वो बताते हैं आमतौर पर मां बाप कहते हैं कि जहां पानी होगा वहीं बेटी ब्याही जाएगी। जनवरी में एक पिता ने कहा शायद और मैं शादी के सपने देखने लगा हालांकि बाद में उनके भावी ससुर ने कोई जवाब नहीं दिया। कहते हैं, मां बाप को लगता है कि उनकी बेटी की पूरी जिंदगी पानी खींचने में ही चली जाएगी।
यह कहानी सिर्फ हेतू की नहीं है सालों से बुंदेलखंड में सूखा पड़ रहा है और इससे ना सिर्फ फसलें खत्म हो गई हैं बल्कि शादी की उम्र में नौजवान कुंवारे घूम रहे हैं। भारत के उत्तरी इलाकों में बहुत सा हिस्सा पानी से लबालब है बल्कि कई जगह तो बाढ़ के कारण हाल के हफ्तों में भारी परेशानी रही है लेकिन बाकी इलाके सूखे की चपेट में हैं। बीते दो दशकों में बुंदेलखंड में अब तक बार सूखा पड़ा है, आमतौर पर यहां साल में 52 दिन ही बरसात होती है लेकिन 2014 के बाद इन दिनों की संख्या घट कर आधी रह गई है। बनगांव गांव की जल परिषद के प्रमुख धनीराम अहरवाल कहते हैं, हां पानी सब कुछ है। यह मुद्रा है, अगर आपके पास है तो आपके पास सब है यहां तक कि बीवी भी, अगर नहीं है तो कुछ भी नहीं।
मजबूरी है पलायन
बुंदेलखंड के बारिश पर निर्भर छोटे छोटे खेतों में गेंहू, दाल और बाजरे की फसल होती है, जब बारिश नहीं होती और फसलें नष्ट हो जाती हैं तो आमदनी और शादी की संभावना भी खत्म हो जाती है। नतीजा ये होता है कि लोग आसपास के शहरों का रुख कर लेते हैं। ग्रामीण बुंदेलखंड के पांच में से दो लोग पिछले एक दशक में यहां से शहरों का रुख कर गए हैं।
पर्यावरणवादी केशव सिंह इंडिया वाटर पोर्टल वेबसाइट चलाते हैं, वे स्थानीय संगठनों के संघ बुंदेलखंड वाटर फोरम से भी जुड़े हैं। उनका कहना है कि अगर चीजें ऐसे ही चलती रहीं तो बुंदेलखंड को कुंवारों की धरती के रूप में जाना जाएगा। यहां खाली घरों पर लगे बड़े बड़े ताले खूब नजर आते हैं। हेतू के गांव में करीब 8 हजार लोग रहते हैं। केवल इस साल अब तक 100 से ज्यादा लोग यहां से जा चुके हैं। गांव वालों का कहना है कि हर साल करीब 200 लोग यहां से जाते हैं इनमें से कुछ हमेशा के लिए चले जाते हैं तो कुछ बीच बीच में यहां का चक्कर लगा जाते हैं। इसी गांव के रहने वाले रामाधार निषाद ने बताया कि बीते दो साल से यहां कोई शादी नहीं हुई है।
इस इलाके से जाने वाले सारे लोग अपनी मर्जी से ही नहीं जाते, फसलों की क्षति होने पर किसान आत्महत्या कर लेते हैं और उनके पीछे कर्ज में डूबे अनाथ बच्चे और विधवा औरतें रह जाती हैं। कई बार मानव तस्कर उन्हें वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेल देते हैं। इतना ही नहीं बहुत से लोगों को शादी के लिए लड़की नहीं मिलती तो यही तस्कर उन्हें दूसरे राज्यों से लड़कियां लाकर उनकी शादी भी कराते हैं। छत्तरपुर जिले के बहुत से लोगों ने उड़ीसा राज्य की लड़कियों से शादी की है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स को तीन महिलाओं ने बताया कि उन्हें एक दलाल ने अच्छी शादी कराने का झांसा दिया था।
उनसे कहा गया कि पक्के मकान और पर्याप्त पानी की सप्लाई वाले घर में शादी की जा रही है। 30 साल की रीमा पाल ने बताया, घर में पानी की नल की बजाय यहां केवल हैंडपंप था, पानी का टैंकर आता नहीं था…किसी ने नहीं बताया कि हालात इतने बुरे हैं। रीमा 12 साल पहले चैखेड़ा गांव में ब्याह कर आई थीं,यहां बाल विवाह भी बहुत हो रहे हैं ऊंची फीस के कारण लड़कियां स्कूल नहीं जाती, इसकी बजाय मां बाप उन्हें पानी लाने भेजते हैं। उन्हें आर्थिक बोझ के रूप में देखा जाता है और महज 12 साल की छोटी उम्र में उनकी शादी कर दी जाती है।
18 साल की उम्र में दुल्हन बनी सीमा अहरवाल कहती हैं कि पुरुष यह समझने में नाकाम रहे हैं कि बिना पानी के बुंदेलखंड के गांव महिलाओं के लिए कितने खराब हैं। सीमा कहती हैं,आप महिलाओं को दोष नहीं दे सकतीं, पानी से जीवन चलता है चाहे खाना हो, सोना या फिर नहाना सब कुछ। सीमा अब 28 साल की हो चुकी हैं और उनका परिवार दिल्ली जाने की सोच रहा है।
बुंदेलखंड का इलाका पथरीला है और बहुत से लोग मानते हैं कि इसी वजह से बारिश का पानी यहां के भूजल को रिचार्ज नहीं कर पाता। हालांकि बहुत से लोग इसके लिए इंसानों को भी दोषी ठहराते हैं। पानी की मांग बढ़ती जा रही है और उसे बढ़ाने के लिए कोई उपाय नहीं किया जा रहा, सरकारी एजेंसियां और नागरिक समुदाय पानी के स्रोतों को फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए तालाबों की गहराई बढ़ाई जा रही है, बांध बनाए जा रहे हैं ताकि सिंचाई हो सके और बारिश का पानी का जमा हो सके।
चीयर्स डेस्क